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इस कदर तू इस दिल मे ……

मेरी कलम से !!
मेरी कलम से !!
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दिल की गहराइयो मे कभी वो उफान ना ला पाया।

मंजिल मुझे भी मिले कभी वो मुकाम ना ला पाया।

दिल मे सिर्फ कैद रखा तेरे चहरे को,
उसको जमाने मे कभी सारेआम ना ला पाया।……………..1

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धीरे-2 होश से बदहोश हुए इस कदर।
तेरी जुस्त जूं मे फिरे फिर शामों शहर।

बीते पालो को बस सजोते ही रह गए,
दिल को जो मिले, कभी वो इनाम ना ला पाया। ——————-2

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बीते मेरे पल तेरे बाहों की आगोश मे,
सिर्फ ये दुआ ही रह गई, कभी वो शाम ना ला पाया।

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मांगा है तुझे मन्नतों से बढ़कार।
चाहा है तुझे जन्नतों से बढ़कर।

बस तंहाइयाँ ही रही इन आशियानों मे,

कभी सच मे हो, वो आवाम न ला पाया। ……………….3

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तुझको जिंदगी खत्म तो नही, और शुरुवात करना आसान भी नहीं।

तेरी तरह कोई और हो, ऐश कोई अब इन्सान्न भी नहीं।

तुझे पाने की बस धुनी ही रामा दी खुदपर,
इस सोच मे कोई और गुलफाम ना ला पाया। ……………4

बस तड़पते रह गए, इन आवारा गलियो मे,
जिंदगी के लिए कोई और आयाम ना ला पाया।

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करूंगा तेरी इबादत ये आदत बना ली मैंने,
फिर भी मोहब्बत का अब तक वो सलाम ना ला पाया।

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ज़माना भी देखे अब अपना प्यार,
तुझे मे सरेआम ना ला पाया। …………………………….1

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