Menu
blogid : 13885 postid : 15

एक ख़्वाहिश जलने की

मेरी कलम से !!
मेरी कलम से !!
  • 15 Posts
  • 358 Comments

कभी चिराग बनकर जला

कभी आग बनकर जला
जली हो चाहे किसी की भी खुशिया
लेकिन में ही दाग बनकर जला…
.
सुलग-२ जल रहा जिस्म ये मेरा..
तपते आसियाने ही रहा अब मेरा डेरा..
कभी किसी ने तरस खाकर छोड़ा,
तो कभी किसी के लिए हिसाब बनकर जला….
.
धोका देकर मुझे मिटती गई मेरी ही हस्ती..
आरजू ही की थी की, जल गई मेरी बस्ती
तो कभी उन बस्तियों के साथ में,
तो कभी उनकी खाक बनकर जला….
.
हौसला रखे हम, तिल-२ मिटते गए..
अरमान खावाहिसे, हर पल जलते गए..
तो कभी किसी की शौक के लिए,
तो कभी नफरते महताब बनकर जला..

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply