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एक ख़्वाहिश जलने की
मेरी कलम से !!
15 Posts
358 Comments
कभी चिराग बनकर जला
कभी आग बनकर जला
जली हो चाहे किसी की भी खुशिया
लेकिन में ही दाग बनकर जला…
.
सुलग-२ जल रहा जिस्म ये मेरा..
तपते आसियाने ही रहा अब मेरा डेरा..
कभी किसी ने तरस खाकर छोड़ा,
तो कभी किसी के लिए हिसाब बनकर जला….
.
धोका देकर मुझे मिटती गई मेरी ही हस्ती..
आरजू ही की थी की, जल गई मेरी बस्ती
तो कभी उन बस्तियों के साथ में,
तो कभी उनकी खाक बनकर जला….
.
हौसला रखे हम, तिल-२ मिटते गए..
अरमान खावाहिसे, हर पल जलते गए..
तो कभी किसी की शौक के लिए,
तो कभी नफरते महताब बनकर जला..
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