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हाँ मैं साथ हूँ तेरे

मेरी कलम से !!
मेरी कलम से !!
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वो मौसम ना था, वो बाहर ना थी।

वो दूर जाने को हमसे तैयार ना थी।
हम फिर भी बह चले तिनको को तरह,
जबकि बारिश मे इतनी बौछार ना थी।……… 1
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रुके हम जहां वो छोर और था।
दर्द के काफिलो का शुरू जो दौर था।
सिरवटों की सिसकियाँ वो भी रोयी इस कदर,
न मिले हम , वो अब इस पार ना थी।…….. 2
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उलझने बड़ी तो दिल मचल गया।
आशुओ की गर्मी से ये जिस्म जल गया।
रोएँ-2 भी रोये मेरी देखकर तड़पन,
वो आईना थी, उनके टुकड़ो मे हाजर ना थी।….3
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आरज़ू-ए- पाने की जो जिंदा हु मैं।
घायल, पर उड़ता परिंदा हूँ मैं।
फिर बनाऊँगा आसियाना इस उम्मीदे कोसिस मे,
वो जीत हैं, मेरी हार ना थी।……………………..4

वो मेरी किस्मत बन गई,

किसी और उसके के  प्यार की फिर वो हकदार न थी।

वो आईना हैं, उनके टुकड़ो मे वो हज़ार न थी।…….. 3

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