हिंदी ब्लॉगिंग केवल हिंदी लेखनी मात्र को प्रेरित करती हैं “Contest”
मेरी कलम से !!
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हिंदी ब्लॉगिंग हिंदी को मान दिलाने में सार्थक हो सकती है या यह भी बाजार का एक हिस्सा बनकर रह जाएगी?
ये तो सुनने मे ही बढ़ा अटपटा लग रहा हैं की हिन्दी ब्लॉगिंग मात्र से हिन्दी भाषा को मान मिल सकता हैं। या फिर हिन्दी ब्लॉगिंग हिन्दी भाषा को उन उचाइयों तक ले जाएगी। ये तो यही बात हो गई ब्लॉगिंग नामक गुलेल ने हिन्दी भाषा नाकाम पत्थर को हिन्दी ब्लॉग मे समेट कर तेजी से फेक रही हो और हिन्दी भाषा अचानक से हवा मे उढ़कर अपना परचम लहराने लगे। ब्लॉगिंग मेरे नज़र मे एक ऐसा मंच हैं जहा लोग अपनी बातो समूहिक रूप से लोगो के सामने रखते हैं तथा सूचनाओ का आदान प्रदान करते हैं, रचनाकर के विचारो के पाठक समझते हैं और उसपर अपनी प्रतिकृयाए देते हैं, गध तथा पध के माध्यम से हम लेखन के तरीके को सीखते हैं, और उसको अपने लेखन मे उतारते हैं। हाँ ये अलग बात हैं की हिन्दी ब्लॉगिंग ने इतना जरूर किया है की जो कभी लिखते नहीं थे, या तो वो लोग जो अपनी जानकारी को अपने अंदर ही समेट कर रखते हैं। उन लोगो के अंदर भी लिखने की तृष्णा को जागृत का काम किया हैं मगर इसका मतलब ये नही की वो हिन्दी पहले से जानते नही थे, या तो हिन्दी से उन्हे प्यार नही था।
आज की अगर बात करे तो बहुत ही कम ऐसे माध्यम हैं जहा पर हम हिन्दी मे अपना लेख लिख सकते हैं जबकि अँग्रेजी मे ब्लॉगिंग के लिए हिन्दी से कई ज्यादा मंच उपलब्ध हैं फिर तो ये सवाल अँग्रेजी माध्यम भी उठा सकता जैसा की हिन्दी ब्लॉगिंग उठा रहा हैं। सच मानो मे अगर यह प्रतियोगिता अगर अँग्रेजी माध्यम मे भी होती तब भी लोग इतने ही चाव से प्रतियोगिता मे भाग लेते और अपनी बातो संक्षेप ही सही, टूटे फूटे शब्दो मे ही सही लेकिन रखते जरूर, जिसको वैसे ही लोग सम्मान पूर्वक पढ़ते जैसे की हिन्दी भाषा के लिखे चिट्ठा को पढ़ते हैं। हम इंसान के अंदर ये कमी है या अच्छाई हर चीज़ को हो या हर बातों मे, प्रतियोगिता जोड़ देते हैं। ये अगर कर लिया तो ये हो जाएगा नही किया तो कुछ नही होगा। हिन्दी मे ब्लॉग करने से भाषा को सम्मान मिलेगा नही किया तो भाषा को आगे बढ़ाने मे तुम कोई मदद नही करोगे। जैसे लड्डू दिखाकर बच्चो को नाच नचवाते हैं। वैसे ही प्रतियोगिता का नाम लेकर ये सिर्फ खेल खेला जाता हैं। और रही बात भाषा के बाज़ार के हिस्से मे रह जाने की? तो जैसे ही प्रतियोगिता शब्द जुड़ता हैं वैसे ही भाषा बाजार की हो जाती हैं। हिन्दी ब्लॉगिंग मेरी नज़र मे सिर्फ हिन्दी भाषा को कागज मे लिखने के लीए बस मात्र प्रेरित करता हैं, इसके अलावा अगर हम ये कहे की कोई भी क्रांति इस मंच से आएगी तो ये खुद को धोका देने जैसे होगा। क्योकि ……….. ये तो सब जानते हैं की बूंद बूंद कर सागर बनता हैं पर ये भी सब जानते हैं की अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता, और उस समय जबकि सबको दूसरी भाषाओ से हमे हमदर्दी हो चुकी हो, बल्कि यूं कहे की दूसरी भाषाएँ सबकी जरूरत हो चुकी हैं। जरूरत इस लिए की हमे उस भाषा की जानकारी से फायदा होता हैं। जबकि हिन्दी भाषा के बुंदों को इकट्ठा करके सागर भी बनाने के सोचे तो भी कई युग बीत जाएंगे। तब तक दूसरी भाषा हमपर इनता हावी हो चुकी होगी की हिन्दी भाषा के सागर मे कोई भी डुबकी लगाने वाला नहीं होगा। कठोर मगर सत्य शायद यही हैं।
व्यंग हेतु एक कविता पेश हैं उम्मीद हैं हम सब कुछ झुठला कर एक दिन हिन्दी का परचम जरूर लहरंगे।
कोई कहता हैं हिन्दी मे बोलो। कोई कहता हिन्दी मे सोचो। कोई कहता हैं हिन्दी से प्यार करो। पर कोई ये नही कहता हैं हिन्दी सीखकर दो रोटी हम अपने परिवार के लिए कमा सकते हैं?? कोई कहता हैं हिन्दी को बोएँगे। कोई कहता हिन्दी को साथ लेकर सोएँगे। कोई कहता की हिन्दी की लहरों मे तन मन धोएंगे। पर कोई ये नही कहता की हम अपने बच्चे का दाखिला हिन्दी माध्यम विध्यालय मे करायागे?? कोई कहता हिन्दी के लिए आंदोलन मे मशाले जली। कोई कहता हिन्दी हम लोगो के दिल मे पली। कोई कहता हिन्दी घूमती अब हर गली गली। पर कोई ये नही कहता हमे हिन्दी भाषा की जरूरत (आर्थिक रूप से) हैं?? कोई कहता चिट्ठा लिखने से हिन्दी अपने रुवाब पर होगी। कोई कहता लेखको की संख्या बढ़ने से हिन्दी अपने सबाब पर होगी। पर कोई ये नहीं कहता की मैं इंजीनियर नहीं साहित्यकार बनूँगा। मे तो बस इतना मानता हूँ झूठी आस लेकर जीने से अच्छा सच के साथ फना हो जाना??
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